Monday, February 1, 2016

उड़नतश्तरी से एक मुलाकात - राकेश शर्मा


यह घटना 15वीं सदी के आरंभ में घटित हुई थी, मैं यह घटना राकेश जी के 5वीं पीठी के वारिस के सहयोग से लिख रहा हूं। उस वक्त साम के 6 बज रहे थे, मैं और मेरे सहयोगी वैज्ञानिक दल नये ग्रह के खोज की पुष्टि के लिए अनुसंधान पर विचार-विमर्श कर रहे थे। मै खोजी दल का मुखिया था। हमें एक दुसरा गैलेक्सी मिला था, जो हमारी दुनिया के तरह ही जीवन संभव था। हम कल सुबह वहां के लिए रवाना होने को थे, मै और जॉन दलों का नेतृत्व करने वाले थे। मिटिंग खत्म हुई, मैं अपने कमरे में सोने चला गया। उत्सुकता से निंद नहीं आ रही थी सारी रात इस नये खोज को लेकर सो नहीं पाया। डर भी लग रहा था और खुशी भी हो रही थी। जैसे तैसे रात बीत गइ, सुबह मैं 5 बजे निकला पृथ्वी से दूर, सूर्य से भी दूर नये गैलेक्सी की खोज में। सफर लंबा था, किसी तरह बोरियत मिटाने के लिए किताबें पढ कर समय काटता गया। दो दिन और रात बीत गया मैं अपने मंजिल के करीब था, आचानक सब कुछ दिखना बंद हो गया, आँखों के सामने अंधेरा छा गया। मैं डरा नहीं क्योंकि अक्सर स्पेस में ऐसी घटना होती रहती है। कुछ घंटे और इंतजार करने के बाद मै नये गैलेक्सी के पास था। खुशी का इजहार मैं कर नहीं पा रहा था। खैर मैं आगे बढा और लेंड किया। उस ग्रह पर अजिब से लोगों को देखकर मैं पूरी तरह से डर गया, मुझे लगा इस ग्रह वासियों को मेरे आने कि कोई भनक तक नहीं लगी है। मैं वापस आने लगा, स्पेस जहाज में सवार होकर पृथ्वी के लिए निकल पड़ा। जब मैं पृथ्वी से कुछ ही घंटे की दूरी पर था मुझे जहाज में कुछ दिखाई दिया।दो हरे रंग की गोली (टेबलेट) बिल्कुल शून्य आकार का था। मैंने कभी ऐसा टेबलेट नहीं देखा था। मैंने उसमें से एक को खा लिया। जो मेरे जीवन का सबसे बड़ा श्राप बन गया, मेरा जीवन बर्बाद हो गया। आप सोच रहे होंगे यह कैसे संभव हो सकता है कि टेबलेट जिंदगी बर्बाद कर सकती है। तो आगे सुनिए। टेबलेट खाते ही मेरे अंदर असीमित शक्ति और उर्जा आ गई। मैं खुद को दुनिया का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति समझने लगा जो बन भी गया। खैर मैं सबसे पहले अपने लिए ऐसा ही शक्तिशाली जीवनसाथी ढूंढने के लिए बेचैन हो उठा। मैंने दुशरा टेबलेट लिया उसे अपनी जेब में संभाल कर रख दिया। पृथ्वी पर वापस लौट कर अनुसंधान केंद्र में सभी जरूरी जानकारी देकर लैट रहा था। इतने में मेरे अंदर का शैतान जाग उठा और मैं जीवनसाथी कि तलाश करने लगा। मैं और रेखा एक-दूसरे से प्यार करते थे और जॉन और लिसा भी एक-दूसरे से प्यार करते थे। मैं रेखा को यह टेबलेट खिलाकर शक्तिशाली बनाना चाह रहा था। पर मेरे अंदर का शैतान को बहुत जल्दबाजी थी। रास्ते में मुझे लिसा मिली मैंने टेबलेट लिसा को खिला दिया। वो शक्तिशाली होने के साथ-साथ खुद-ब खुद ही मेरे ओर आकर्षित हो गयी और शरीर को मेरे हवाले कर दिया। कुछ समय बाद मेरे जांच के लिए डॉक्टर ने ब्लड लिया और रिपोर्ट देखकर सभी को मेरी असलियत पता चल गया। मैं वहां से भाग निकला मेरे शरीर पर चोट आई और छत से कूदने की वजह से मेरे पैरों कि हड्डी टूट गई। मैं वहीं बैठ गया। कुछ देर मैं मेरे सारे घाव भर गया मैं बिल्कुल तंदुरुस्त हो गया। मुझे मेरे शक्ति का प्रयोग और अहसास हो गया। मैं दुनिया में तबाही मचाने लगा और मेरे साथ लिसा भी। जॉन लिसा को मेरे साथ देखकर स्तब्ध रह गया। और रेखा भी कुछ ऐसा ही महसूस कर रही थी। मुझपर गोलियां चलाई गई, तोप के गोले दागे गए पर मेरे घाव पलक झपकते ही खत्म हो जा रहे थे। मैंने हजारो मासूमों की जान ली। मै चाहकर भी खुद को रोक नहीं पा रहा था वो टेबलेट मुझे ऐलियन बना रहा था। अपने रिश्तेदारों से दूर, अपने प्यार से दूर ये मैं कहां आ गया था। मैंने फैसला कर लिया था अब मौत ही इसका आखिरी अंजाम है पर कैसे। मरने का सभी कोशिश असफल रहा। एक और तरीका अभी बाकी था मैं हास्पिटल पहुंचा और हमला कर दिया। जॉन वहां मौजूद था उसकी नजर ऐक्सरे मसिन पर पड़ी बस वो मेरे मौत का कारण बन गया। उसकी क्षमता को मेरा शरीर बर्दाश्त नहीं कर सका और खत्म हो गया। मेरे मरते ही लिसा भी खत्म हो गई। अब बस मेरी याद के सहारे ही रेखा रह गई थी और लिसा के लिए जॉन। सब खत्म हो गया था। वैज्ञानिकों ने यह अनुसंधान भी खत्म कर दिया था। 2 साल बाद - जॉन और रेखा ने शादी कर लिया। अब उनके बच्चे भी हैं। वो कभी भी मुझे भुल नहीं सके।



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Sunday, January 31, 2016

भूतिया बंगला:एक सच्ची घटना।

यह कहानी उस समय की है जब मैं 16 साल का था। अमावश की रात थी। रोशनी कि एक छटाक भी नहीं था। मैं और मेरे 3 दोस्त राकेश, पुजा और खुशी सब ने मिलकर पिकनिक मनाने का फैसला किया था। पुजा यू तो सभी कि दोस्त थी पर मेरी दोस्त से कुछ ज्यादा ही थी। वो मेरे किसी भी बातें कर नहीं टालती थी और मैं भी कुछ ऐसा ही करता था। मेरे अलावा सबों ने कहा नैनीताल के पास बड़ा सा जंगल है, वहीं चलते हैं। हम नैनीताल से ही कुछ दूरी पर रहकर 12वी कि पढ़ाई करते थे। घर वालों को झूठ बोलकर हम इकट्ठे हुए। पिकनिक मनाने का समान लिया और जंगल के लिए निकल पड़े। दो घंटे के सफर के बाद हम मंजिल पर थे। हमने दो टेंट हाउस लगाया। सामान को सहेजने के बाद हम सभी जंगल में लकड़ियाँ बटोरने निकल पड़े। लकड़ियों का अलाव जलाकर हम सब वहां बैठक जमा दिया। करीब 9 बजे खाना खा कर सोने के लिए टेंट हाउस में चले गए। मैं और पुजा एक-दूसरे के साथ और राकेश और खुशी भी। मै पुजा के साथ थोड़ी सी मस्ती करने के बाद सो गया। राकेश और खुशी उसी समय सो गये थे। पुजा भी थोड़ी देर बाद निंद की आगोश में खो गई।रात साढ़े बारह बजे के आसपास खुशी को पानी पीने की तलब लगी। हमरा लाया हुआ पानी खत्म हो गया था। वो अकेले ही बाहर आ कर पानी ढूंढने लगी। जंगली जानवरों के रोने की आवाज सुनकर वो डर भी रही थी पर हिम्मत दिखाते हुए वो कुछ दूर पर एक कूंऐ पर पहुंची। जानवरों के रोने की आवाज और तेज हो गई। पानी देखकर वो कूंऐ के आसपास पानी निकालने का रस्सी ढूंढने लगी। आखिरकार उसे रस्सी मिल गया और पानी निकाल कर जी भर के पीया। आचानक ही उसकी नजर रस्सी पर पड़ी जो रस्सी नहीं सांप था और पानी के जगह खून दिख रहा था। खुशी बुरी तरह डर गई, उसके मूंह से आवाज भी नहीं निकल पा रहा था। और वो बेहोश होकर गिर पड़ी। उधर राकेश को इसकी कोई खबर नहीं थी वो बेसुध पड़ा था। आचानक ही कैसे पता नहीं पर मेरी निंद खुल गई और मुझे पानी पीने की चेष्टा हुवी। मैं उठा और बाहर आ कर पानी ढूंढने निकल पड़ा। थोड़ी ही दूर पर टॉर्च कि रोशनी में देखा एक लड़की पेड के निचे बिना कपड़ों के बेहोश पडीं है। मै डरते हुए पास गया, देखने पर पता चला कि ये खुशी है। मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। उसे अपने गोद में उठा कर कपड़े पहनाया और टेंट हाउस कि ओर ले जाने लगा। इतने में उसे होश आ गया, वो मुझसे लिपटकर रोने लगी। अब उसका डर भी खत्म हो गया था वो बस मेरी बांहों में रहना पसंद कर रही थी। फिर मेरे कहने पर टेंट के पास चलने लगी, हम चलते रहे। पर हमारा मंजिल आ ही नहीं रहा था। बेबस होकर हम चारों तरफ देखने लगे। कुछ दूर पर रोशनी सा दिख रहा था। हम उस ओर चल पड़े। वहां पहुंच कर देखा तो वह एक बंगला था, बहुत ही खूबसूरत, मनमोहक चित्रकारी बंगला। मुझे सक हुआ कि कैसे इस जंगल में ऐसा बंगला हो सकता है। ये मुमकिन नहीं था बस एक भ्रम है। मै उसके पास गया और अंदर झांककर देखा तो मेरे होस उड गये। वहां इंसान नहीं थे भूतों का बसेरा था वह बंगला। हम वहां से भाग निकले और सुबह होने का इंतजार करने लगे। सुबह होते ही हम टेंट हाउस में गये और जंगल से निकल कर घर आ गए। उस रात के बाद मुझे भूत-प्रेतों पर भरोसा हो गया। और उस रात के बाद से खुशी भी मेरी खास दोस्त बन गई है
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