Sunday, January 31, 2016

भूतिया बंगला:एक सच्ची घटना।

यह कहानी उस समय की है जब मैं 16 साल का था। अमावश की रात थी। रोशनी कि एक छटाक भी नहीं था। मैं और मेरे 3 दोस्त राकेश, पुजा और खुशी सब ने मिलकर पिकनिक मनाने का फैसला किया था। पुजा यू तो सभी कि दोस्त थी पर मेरी दोस्त से कुछ ज्यादा ही थी। वो मेरे किसी भी बातें कर नहीं टालती थी और मैं भी कुछ ऐसा ही करता था। मेरे अलावा सबों ने कहा नैनीताल के पास बड़ा सा जंगल है, वहीं चलते हैं। हम नैनीताल से ही कुछ दूरी पर रहकर 12वी कि पढ़ाई करते थे। घर वालों को झूठ बोलकर हम इकट्ठे हुए। पिकनिक मनाने का समान लिया और जंगल के लिए निकल पड़े। दो घंटे के सफर के बाद हम मंजिल पर थे। हमने दो टेंट हाउस लगाया। सामान को सहेजने के बाद हम सभी जंगल में लकड़ियाँ बटोरने निकल पड़े। लकड़ियों का अलाव जलाकर हम सब वहां बैठक जमा दिया। करीब 9 बजे खाना खा कर सोने के लिए टेंट हाउस में चले गए। मैं और पुजा एक-दूसरे के साथ और राकेश और खुशी भी। मै पुजा के साथ थोड़ी सी मस्ती करने के बाद सो गया। राकेश और खुशी उसी समय सो गये थे। पुजा भी थोड़ी देर बाद निंद की आगोश में खो गई।रात साढ़े बारह बजे के आसपास खुशी को पानी पीने की तलब लगी। हमरा लाया हुआ पानी खत्म हो गया था। वो अकेले ही बाहर आ कर पानी ढूंढने लगी। जंगली जानवरों के रोने की आवाज सुनकर वो डर भी रही थी पर हिम्मत दिखाते हुए वो कुछ दूर पर एक कूंऐ पर पहुंची। जानवरों के रोने की आवाज और तेज हो गई। पानी देखकर वो कूंऐ के आसपास पानी निकालने का रस्सी ढूंढने लगी। आखिरकार उसे रस्सी मिल गया और पानी निकाल कर जी भर के पीया। आचानक ही उसकी नजर रस्सी पर पड़ी जो रस्सी नहीं सांप था और पानी के जगह खून दिख रहा था। खुशी बुरी तरह डर गई, उसके मूंह से आवाज भी नहीं निकल पा रहा था। और वो बेहोश होकर गिर पड़ी। उधर राकेश को इसकी कोई खबर नहीं थी वो बेसुध पड़ा था। आचानक ही कैसे पता नहीं पर मेरी निंद खुल गई और मुझे पानी पीने की चेष्टा हुवी। मैं उठा और बाहर आ कर पानी ढूंढने निकल पड़ा। थोड़ी ही दूर पर टॉर्च कि रोशनी में देखा एक लड़की पेड के निचे बिना कपड़ों के बेहोश पडीं है। मै डरते हुए पास गया, देखने पर पता चला कि ये खुशी है। मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। उसे अपने गोद में उठा कर कपड़े पहनाया और टेंट हाउस कि ओर ले जाने लगा। इतने में उसे होश आ गया, वो मुझसे लिपटकर रोने लगी। अब उसका डर भी खत्म हो गया था वो बस मेरी बांहों में रहना पसंद कर रही थी। फिर मेरे कहने पर टेंट के पास चलने लगी, हम चलते रहे। पर हमारा मंजिल आ ही नहीं रहा था। बेबस होकर हम चारों तरफ देखने लगे। कुछ दूर पर रोशनी सा दिख रहा था। हम उस ओर चल पड़े। वहां पहुंच कर देखा तो वह एक बंगला था, बहुत ही खूबसूरत, मनमोहक चित्रकारी बंगला। मुझे सक हुआ कि कैसे इस जंगल में ऐसा बंगला हो सकता है। ये मुमकिन नहीं था बस एक भ्रम है। मै उसके पास गया और अंदर झांककर देखा तो मेरे होस उड गये। वहां इंसान नहीं थे भूतों का बसेरा था वह बंगला। हम वहां से भाग निकले और सुबह होने का इंतजार करने लगे। सुबह होते ही हम टेंट हाउस में गये और जंगल से निकल कर घर आ गए। उस रात के बाद मुझे भूत-प्रेतों पर भरोसा हो गया। और उस रात के बाद से खुशी भी मेरी खास दोस्त बन गई है
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